Wednesday, June 19, 2013

बेटी


           बेटी

मेरी भी एक बिटीयां होती,
          ख्वाब बुनती परियों सा l
पंख लगाकर उडाती हमें,
            सैर कराती परिदों सा l

परदे चहकते,दीवारें बोलती,
             घर सजता महल सा l
तुलसी हंसती,अल्पनाएं बसती,
        आंगन नाचता मोर सा l

दीप जलाती आंगन में,
     ओज फैलाती दीवाली सा l
खुद भी गाती,घर से गवाती,
           तार छेडती सरगम सा l

अब जाग भी जा 'पुष्पेय',
          मत बइठ उदास सा l
तेरी भी बहु आएगी,
         अहसास देगी बेटी सा l


                                   'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े

10 comments:

  1. Lovely poem and yes daughter is a lovely and wonderful gift of God

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2013) के "उसकी बात वह ही जाने" (शुक्रवारीय चर्चा मंचःअंक-1282) पर भी होगी!
    --
    रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए शुक्रवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आफिस के काम से बाहर होने की वजह से चर्चा में सम्मिलित हो न पाया ...क्षमाँ प्रार्थी हूँ... मेरी रचना को चर्चा में जगह देने से आभारी हूँ

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !

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  4. बहुत सुंदर सार्थक रचना,

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  5. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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