Sunday, June 9, 2013

हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई

                                                 हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई





  मरुस्थल में तूने
                             की सिंचाई,
 कपोलों से जो
                     तूने वृक्ष बनाई.
        हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई.


 गोदी का तूने
                   बिछोना बनाई,
 आंचल से तेरे
                     बनी रजाई.
        हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई.


 ट्रेन से गिरकर भी,
                    मेरी जान बचाई.
 'वैनगंगा' की धार से,
                मुझे बचाकर लाई.
 हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई.


  मेरी हर सांस,
                   तेरी ही रहनुमाई.
 क्यों चुपचाप सही,
                   तू मेरी बेवफाई.
 हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई.


 ये हमारा मुक़द्दर,
              या खुदा की खुदाई.
 हाँ ! तुझे देखकर ही,
          उसने ममता बनाई
हाँ ! मैंने देखी है यशोदामाई.


        'पुष्पेय' ओमप्रकाश गोंदुड़े




7 comments:

  1. इस प्यार को,इन पलों को भूल गए तो जीकर भी जिए नहीं .... बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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    1. क्या खूब कहा है...साभार

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  2. वाह धन्य है वो माँ जो ऐसा पुत्र है पाई, क्या कहने शिल्प,कथ्य,भाव एवं प्रवाह बेहद उन्नत एवं शानदार है, ह्रदयस्पर्शी रचना हेतु ह्रदय से बधाई स्वीकारें भाई.

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  3. आपकी यह रचना कल बृहस्पतिवार (13-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. thank you very much Arun ji.Aapka sneh aur aise hi bana rahe...Dhanyawad.

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  4. बेहद उन्नत एवं शानदार है, ह्रदयस्पर्शी रचना.....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद्...साभार

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