Friday, January 20, 2017

आभूषण

 आभूषण

शाख से टूटा एक पत्ता,
        कह रहा था दासतां।
 फिर बहारें आएंगी,
       और फिर हंसेगा बागवां।

पतझड़ तो एक बहाना है,
      फिर से वसंत को आना है।
अंकुर तो फिर से फूटेंगें,
      कितना भी सक्त दाना है।

हल के घाव बिना,
      सिंचती नहीं धरा।
पार करें जो उफ़ां नदी का,
    वहीं है मांझी खरा।

हथौडी के प्रहार से,
     सोना भी न बच पाएगा ।
आग से जो निकल गया,
     वहीं आभूषण कहलाएगा।

                 'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े