दिल का पंछी
सुन
पंछियों की किलकारीयाँ,
दिल
का पंछी भी बोल उठा ।
तू
भी चहचहा सकता है,
बस! खुद के मानस से पर्दा हटा।
उड़
जा!ले संग साथियों को
छू
ले आकाश की बुलंदी ।
यदि! कोई साथ ना दे,
फिर
भी चल मत कर मंदी।
'अन्तरिक्ष' अपना खुद बना ले,
क्यों
'क्षीतिज' पे रुकता हैं?
क्या! क्षीतिज किसी का अंत है?
जिसका
"आदि" लापता है।
'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े
(pic:courtesy google)
Bahot badhiya!
ReplyDeleteYe acchhi chiz hai ki aapene is kala ko shuru rakha.
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Vivek Ghodmare
अन्तरिक्ष' अपना खुद बना ले,
ReplyDeleteक्यों 'क्षीतिज' पे रुकता हैं?
क्या! क्षीतिज किसी का अंत है?
जिसका "आदि" लापता है। …। बेहतरीन एहसास
बहुत ही सुंदर प्रयास है भाई भाव बहुत ही अच्छे हैं कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें सादर
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