बेटी
मेरी
भी एक बिटीयां होती,
ख्वाब बुनती परियों
सा l
पंख
लगाकर उडाती हमें,
सैर कराती परिदों सा l
परदे
चहकते,दीवारें
बोलती,
घर सजता महल सा l
तुलसी
हंसती,अल्पनाएं
बसती,
आंगन नाचता मोर सा l
दीप
जलाती आंगन में,
ओज फैलाती दीवाली सा l
खुद
भी गाती,घर
से गवाती,
तार छेडती सरगम सा l
अब
जाग भी जा 'पुष्पेय',
मत बइठ उदास सा l
तेरी
भी बहु आएगी,
अहसास देगी बेटी सा l
'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े
Lovely poem and yes daughter is a lovely and wonderful gift of God
ReplyDeleteya u r right
Deleteबहुत उम्दा |
ReplyDeletethnx tushar ji...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2013) के "उसकी बात वह ही जाने" (शुक्रवारीय चर्चा मंचःअंक-1282) पर भी होगी!
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रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए शुक्रवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आफिस के काम से बाहर होने की वजह से चर्चा में सम्मिलित हो न पाया ...क्षमाँ प्रार्थी हूँ... मेरी रचना को चर्चा में जगह देने से आभारी हूँ
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
बहुत सुंदर सार्थक रचना,
ReplyDeleteसाभार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
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