'पुष्पेय' ओमप्रकाश गोंदुडे
(चित्र गूगल से...साभार) |
एक राजा था.उसके चार दोस्त थे.एक
व्यापारी,एक
सैनिक,एक
ज्ञानी (विद्वान) और
एक किसान था.एक सुबह वे सभी शिकार के लिये एक घने जंगल में गये. घुमते
घुमते वे काफी अंदर पहुंच गये.अचानक उन्हें एक सुवर्ण म्रूग दिखा.वह
काफी खुबसूरत और आकर्षक था.देखते ही उन्हें लगा कि यह मृग उनके राज्य की शोभा बढा सकता हैं.राजा
की आज्ञा पाकर वे सभी उसे पकडने के लिये चल पडे. मृग भी बहुत तेज था.वह भी जोरों से भागने लगा.जंगल,झाडी,नदी और पर्वत होते हुए वह भागते भागते
एक गुफा के पास पहुंच गया.उसके पीछे भागते भागते बाकी लोग भी वहीं
पहुंच गये.एकाएक
जोरों की आवाज हुई और वह हिरण एक विशालकाय राक्षस में परावर्तीत हो गया. उसें
देखकर राजा के सभी साथी डर गयें.राक्षस के डर से वे इधर उधर भागने लगे.मगर
राक्षस ने उन्हें बन्दी बना लिया.इसी दौड-भाग में उनके जुते-चप्पल
बिखर गये. इधर
राजा भी अपने दोस्तों का इंतजार करने लगा.सुबह से शाम हो गई,शाम
से रात हो गयी,और फिर अगली सुबह.राजा
अपने दोस्तों के इंतजार में थक चुका था.उसे अपने दोस्तों की चिंता होने लगी.
उसने निर्णय लिया ... अपने
दोस्तों को ढुंढने का.बिना कोई समय गंवाए वह चल पडा...ढुंढने
अपने दोस्तों को. ढुंढते ढुंढते वह भी उसीं रास्ते पर चल पडा हिरण के पैरों के
निशानों के पीछे पीछे और जंगल,झाडी,नदी और पर्वत होते हुए वह भी उसी गुफा
के पास पहुंच गया.उसे दोस्तों के जुते-चप्पल बिखरे हुए दिखें.देखते
ही थोडा सहम गया.और तैय्यार भी हो गया अगली चुनौती के लिये ...... अपने
म्यान से तलवार खींचकर.उसीपल उसके कानों में ठहाकों की आवाज
गुंज पडी.और
एक विशालकाय राक्षस उसके सामने प्रकट हो
गया.और
बोला, "राजन, तुम्हारे सारे दोस्त मेरे कब्जे में हैं". सुनकर
राजा को गुस्सा आया. तलवार खींचकर राजा बोला, "जिंदा रहना चाहते हो तो छोड दो मेरे
दोस्तों को वर्ना युध्दके लिये तैय्यार हो जाओ". राक्षस बोला,”राजन, क्या हर समस्या युध्द से सुलझ सकती हैं? बुध्दी
से भी हम सुलझा सकते हैं.मैं आपके दोस्तों को छोड भी सकता हूं, मगर... आपको
मेरे चंद सवालों के जवाब देने होंगे.” राजा को उसकी बात ठीक लगी.राजा ने उससे सवाल पूंछने को कहा.
राक्षस ने पहला सवाल
पूंछा, "इस दुनिया से भी भारी चीज क्या हैं?”
राजा सोचने लगा.उसे
अपने दादा की कहानी याद आई.उसके दादा एक राजा थे.मगर
उनके दुष्ट सेनापति ने उन्हे राजगद्दी से हटा
दिया था.उन्हें गरीबी का बोझ झेलना पडा,जो उन्होने सह लिया.बहुत
ज्यादा मेहनत करनी पडी,उसका भी बोझ सह लिया.दु:खों
का बोझ भी सहना पडा,वह भी सह लिया.अपनी मेहनत के बुते उन्होने राजपाट
वापिस पा लिया.मगर एक दिन आखेट करते करते उनके तीर से पानी पीते हुए शेर की
बजाय,एक
इंसान की मौत हो गई, जो उन्हें अंदर तक हिला गयी.उनका
अंतरमन उसके पाप का बोझ सह नहीं पा रहा था.आखिर उन्होंने संसार से ही सन्यास ले
लिया.सब
कुछ त्याग दिया.
अत: राजा ने गम्भीर वाणी से कहा, 'हे! राक्षसराज
पाप का बोझ दुनिया से भी भारी हैं.' राजा के जवाब से राक्षस संतुष्ट हुआ.
राक्षस ने दुसरा सवाल पूंछा,'जल
से पतला क्या हैं?'.
राजा
पुन: गहरे
सोच में पड गया.उसे ध्यान आया कि जल कितना भी पतला क्यों न हो हर जगह नहीं
पहुंच सकता मगर ज्ञान के भरोसें कहीं पहुंचा जा सकता हैं.राजा ने शांत मुद्रा में जवाब दिया कि जल
से पतला ज्ञान हैं.उसके जवाब से राक्षस खुश हो गया.
राक्षस ने तीसरा सवाल पूंछा, 'अग्नि
से भी तेज क्या हैं?'.
राजा पुन: गहरे सोच में पड गया.राजा
को अपने प्रिय मित्र की कहानी याद आ गई.उनका मित्र अपनी बारह वर्ष की मेहनत और
कठीन साधना के कारण परम शक्तिशाली तथा बुध्दीमान था. एक बार वह अपनी ही अकड में जंगल से घर जा रहा था.उसके पीछे से एक मुनि आ रहे थे. मुनि
के बुलाने पर भी वह रूक नहीं रहा था.मुनि ने उसके पास जाकर कहा,'राजन,इतना क्यों अकड रहे हो?दुनिया
में तुमसे शक्तिशाली तथा बुध्दिमान बहुत
लोग हैं”.उसकी
बातें सुनकर उस राजा को बहुत क्रोध आया.उसने क्रोध के चलते मुनि को धकेल दिया.मुनि
का सर फुट गया था. मुनि ने उसे शाप दिया कि,' राजा
! जिस
क्रोध के कारण तुने मुझे गिरा, अब
वहीं क्रोध तुझे तेरी बुध्दि और शक्ति का प्रयोग कभी भी करने नहीं देगा'.एक
पल में ही वह राजा निशक्त और लाचार हो गया.
अत: राजा ने धीर वाणी में जवाब दिया कि,'क्रोध
अग्नि से भी तेज हैं जो
वर्षों की मेहनत और ज्ञान को एक पल में
जला सकता हैं'. राक्षस उसके जवाब से प्रसन्न हो गया था.
फिर राक्षस ने अंतिम
सवाल पूछ, “दुनिया में सबसे ताकदवर चीज क्या हैं?”
राजा पुन: सोच
में पड गया.उसे लगा सबसे ताकतवर
चीज तो किसी भी व्यक्ति या जीव का प्राण होना चाहिये. लेकिन राजा स्वयं अपने प्राणों का भय
छोडकर राक्षस से लडने को तैयार हो गया था... मगर क्यों? क्योंकि उसे अपने दोस्तों से.... अपनी
प्रजा से प्यार हैं.
अत: राजा
पुन: शांत
स्वर में जवाब दिया कि “दुनिया में सबसे ताकदवर चीज प्यार हैं.”
राक्षस
उसकी बातों से गदगद हो गया.और बोला कि,'राजा मैं तेरे जवाबों से खुश हुआ हूं और
उसीकारण तेरे किसी भी एक दोस्त छोड सकता हूं.बोलो किसे छोडना हैं?' राजा
पुन: धर्मसंकट
में पड गया.कुछ देर सोचने के पश्चात राजा ने कहा कि, 'हे
राक्षस राज ! मेरे किसान दोस्त को छोड दो.' राक्षस
ने कारण जानना चाहा.
तब राजा गम्भीर मुद्रा में बोला, “हे
राक्षस !पहले
मैं सैनिक को मागंना चाहता था क्योंकि वह मेरी रक्षा करता हैं,मगर
भूख लगने के बाद शायद मेरी तो क्या,स्वयं की भी रक्षा नहीं कर पायेगा.उसीतरह
ज्ञानी मुझे हमेशा अच्छी बातें सिखाता हैं,मुझे मार्ग से भटकने नहीं देता मगर भूख
लगने पर वह भी लाचार हो जायेगा.”
अंत में राक्षस ने
पूछा, 'आप
तो व्यापारी को भी मांग सकते थे?'
तब
राजा बोला, “व्यापारी तो हमें पैसा ला देता उसीके भरोसें हमारी
अर्थव्यवस्था हैं मगर वह भी भूखे पेट कुछ
काम करने लायक नहीं रहेगा.मगर किसान सबकी भूख मिटा सकता हैं.मुझे
मेरे सभी मित्र एक समान प्यारे हैं.लेकिन सिर्फ एक किसान के भरोसें मैं कई
सैनिक,कई
व्यापारी और कई विद्वान या ज्ञानी तैय्यार कर सकता हूं.”
राजा की बातें सुनकर राक्षस अति प्रसन्न
हुआ.और
हंसते हुए बोला कि,'राजन !मैं एक समस्या हूं,हर
जगह अपने लिये घर तलाशता हूं लेकिन तुम बुध्दीमान हो और हर समस्या की जड तक
पहुंचते हो.इसीलिये तुम्हारें
राज्य में मेरे लिये कोई स्थान नहीं हैं. मैं जा रहा हूं यहाँ से हमेशा के लिये ....अपना नया आशियाना तलाशने .' और फिर सभी मित्र आजाद हो गये और सकुशल
अपने राज्य वापिस आ गये.
(भारत के महान संतों वाणी से प्रेरित और किसान को समर्पित )
समाप्त.