बेटी
मेरी
भी एक बिटीयां होती,
ख्वाब बुनती परियों
सा l
पंख
लगाकर उडाती हमें,
सैर कराती परिदों सा l
परदे
चहकते,दीवारें
बोलती,
घर सजता महल सा l
तुलसी
हंसती,अल्पनाएं
बसती,
आंगन नाचता मोर सा l
दीप
जलाती आंगन में,
ओज फैलाती दीवाली सा l
खुद
भी गाती,घर
से गवाती,
तार छेडती सरगम सा l
अब
जाग भी जा 'पुष्पेय',
मत बइठ उदास सा l
तेरी
भी बहु आएगी,
अहसास देगी बेटी सा l
'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े