मेरा बिटवा
मेरा भी एक ‘बिटवा’ हैं,
सुंदर,भुलक्कड ,भोला-सा l
होंठों पे हंसी, नाक पे गुस्सा,
प्रश्न दागता तोफ-सा ll
खोया रहता अंतरिक्ष में,
पर गहरा हैं किताब-सा l
रूठता कभी,मनाता कभी,
प्यारा हैं बस ‘प्यार-सा’ ll
झांकता मेरी आंखों में,
पढ लेता मुझे रूह-सा l
मां की एक आवाज पर,
आज्ञाकारी बनता ‘राम-सा’ ll
सैर करता मंगल की,
डायनोसार दौडाता घोडे-सा
थाम अपने हाथ भाई का,
रूबाब दिखाता ‘राजा-सा’ ll
क्रिकेट में ‘सचीन’ बनता,
फुटबाल भगाता ‘मेस्सी-सा’
वैज्ञानिकों में ‘आइनस्टीन’ बनता,
कहानियां गढता ‘प्रेमचंद-सा’ ll
‘पुष्पेय’ओमप्रकाश गोंदुड़े
(12.01.2017)