Wednesday, January 11, 2017

मेरा बिटवा

  मेरा बिटवा

मेरा भी  एक बिटवा हैं,
सुंदर,भुलक्कड ,भोला-सा l
होंठों पे हंसी, नाक पे गुस्सा,
प्रश्न दागता तोफ-सा     ll

खोया रहता अंतरिक्ष में,
पर गहरा हैं किताब-सा  l 
रूठता कभी,मनाता कभी,
प्यारा हैं बस प्यार-सा ll

झांकता मेरी आंखों में,
पढ लेता मुझे रूह-सा  l
मां की एक आवाज पर,
आज्ञाकारी बनता राम-सा’ ll

सैर करता मंगल की,
डायनोसार दौडाता घोडे-सा
थाम अपने हाथ भाई का,
रूबाब दिखाता राजा-सा  ll 
क्रिकेट में सचीन  बनता,
फुटबाल भगाता मेस्सी-सा
वैज्ञानिकों में आइनस्टीन बनता,
कहानियां गढता प्रेमचंद-साll


                  पुष्पेयओमप्रकाश गोंदुड़े (12.01.2017)