सोलहवां
साल
"पुष्पेय" ओमप्रकाश गोंदुड़े
31.03.13
एक
दिन हम घुम रहें थे इंडिया गेट,
वहां
एक बुजुर्ग नेता से हो गई भेंट.
सफेद
कुर्ता,सिर पे टोपी और,
हाथ में एक बँनर पकड़ा
था.
'सोलहवा साल-करो गोलमाल'
बड़े अक्षरों में लिखा
था.
हमने
कहा, “ नेताजी,ये कैसा शोर है?
80 की उम्र में क्यों, सोलहवें पर जोर हैं?”
नेताजी
बोले,
" बेटा !कुछ पुराने पाप हैं,
जिनको अब करना साफ हैं.
कुछ
मामलें अब भी उछल रहें है,
कुछ
सपनों में आकर छल रहें हैं.
सोलहवें
में कुछ भूल हो गई,
जो
कांटों से बढकर शूल हो गई.
एक
भूल,
समझाती है 376 की धारा,
तो
दुसरी,
लोकसभा
में ना पिटवा दे दुबारा.
और
पता नहीं,
धमकी कब-कहां से आ जाएं,
अचानक,
कोई भूल बीवी ना बन
जाएं.
और
पता नहीं,
कब क्या लूट जाएगा इस लत में,
आजकल,
बाप भी पैदा होते है अदालत में.
इसीलिए,
यह प्रावधान रहें,
ताकि,
आनेवाला नेता सावधान रहें.
वैसे
भी मेरी उमर तो गुजर गई,
अब मेरा क्या जाएगा?
पर
कम से कम,
' मेरा पोता ' तो इन झमेलों से
बच जाएगा.”
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