Friday, January 20, 2017

आभूषण

 आभूषण

शाख से टूटा एक पत्ता,
        कह रहा था दासतां।
 फिर बहारें आएंगी,
       और फिर हंसेगा बागवां।

पतझड़ तो एक बहाना है,
      फिर से वसंत को आना है।
अंकुर तो फिर से फूटेंगें,
      कितना भी सक्त दाना है।

हल के घाव बिना,
      सिंचती नहीं धरा।
पार करें जो उफ़ां नदी का,
    वहीं है मांझी खरा।

हथौडी के प्रहार से,
     सोना भी न बच पाएगा ।
आग से जो निकल गया,
     वहीं आभूषण कहलाएगा।

                 'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े

                          

Wednesday, January 11, 2017

मेरा बिटवा

  मेरा बिटवा

मेरा भी  एक बिटवा हैं,
सुंदर,भुलक्कड ,भोला-सा l
होंठों पे हंसी, नाक पे गुस्सा,
प्रश्न दागता तोफ-सा     ll

खोया रहता अंतरिक्ष में,
पर गहरा हैं किताब-सा  l 
रूठता कभी,मनाता कभी,
प्यारा हैं बस प्यार-सा ll

झांकता मेरी आंखों में,
पढ लेता मुझे रूह-सा  l
मां की एक आवाज पर,
आज्ञाकारी बनता राम-सा’ ll

सैर करता मंगल की,
डायनोसार दौडाता घोडे-सा
थाम अपने हाथ भाई का,
रूबाब दिखाता राजा-सा  ll 
क्रिकेट में सचीन  बनता,
फुटबाल भगाता मेस्सी-सा
वैज्ञानिकों में आइनस्टीन बनता,
कहानियां गढता प्रेमचंद-साll


                  पुष्पेयओमप्रकाश गोंदुड़े (12.01.2017)