Wednesday, September 11, 2013

आँख

               

                  आँख

        'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े



 

 

 

 


आँख देखने के काम आती हैं,
                      आँख दिखाने के काम आती हैं।
आँख लड़ने के काम आती हैं,
                      आँख लड़ाने के काम आती हैं।
आँख भीड़ने के काम आती हैं,
                      आँख भीड़ाने के काम आती हैं।
आँख रोने के काम आती हैं,
                      आँख रूलाने के काम आती हैं।
 आँख तारने के काम आती हैं,
                      आँख मारने के काम आती हैं।
आँख चमकने के काम आती हैं,
                      आँख चमकाने के काम आती हैं।
आँख नाचने के काम आती हैं,
                      आँख नचाने के काम आती हैं।
आँख पीछे दौड़ने के काम आती हैं,
                      आँख पीछे दौड़ाने के काम आती हैं।
बात बात पर आँख क्यों फेरता है 'पुष्पेय',
                        खुली आँख ही तो सच दिखाती है।
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Friday, August 23, 2013

दिल का पंछी












दिल का पंछी
 

सुन पंछियों की किलकारीयाँ,
दिल का पंछी भी बोल उठा
तू भी चहचहा  सकता है,
बस! खुद के मानस से पर्दा हटा।

उड़ जा!ले संग साथियों को
छू ले आकाश की बुलंदी
  यदि!   कोई साथ ना दे,
फिर भी चल मत कर मंदी।

'अन्तरिक्ष' अपना खुद बना ले,
क्यों 'क्षीतिज' पे रुकता हैं?
क्या! क्षीतिज किसी का अंत  है?
जिसका "आदि" लापता है।

           'पुष्पेय'ओमप्रकाश गोंदुड़े 
     (pic:courtesy google)

Sunday, August 11, 2013

एक दफ़ा,


एक दफ़ा,
     मेरा भी ख्वाब टूटा था,
जब मैं खुद से  रुठा था,
जब दिल,जुबां से झूठा था,
हाँ!मेरा भी ख्वाब टूटा था.

एक दफ़ा,
         मेरा भी चैन खोया था,
जब मैं घोडे बेचकर सोया था,
  जब बहाने बनाकर रोया था,
हाँ! मेरा भी चैन खोया था.

एक दफ़ा,
       मेरी भी आँखें गीली थी,
जब कोशिशें मेरी ढीली थी,
जब डोर भाग्य से चली थी,
हाँ! मेरी भी आँखें गीली थी.

एक दफ़ा,
        मेरा भी एक नाम था,
जब बोलता मेरा काम था,
जब दिल में मेरे 'राम' था,
हाँ! मेरा भी एक नाम था.
         
            पुष्पेय 'ओमप्रकाश गोंदुड़े'
               

Monday, July 15, 2013

पुष्पेय: चिल्लर

पुष्पेय: चिल्लर:            चिल्लर                                 ' पुष्पेय '  ओमप्रकाश गोंदुड़े                                  ...

चिल्लर





           चिल्लर

                             'पुष्पेयओमप्रकाश गोंदुड़े


                                         












(pic:google.com)


             वह भीख मांगता था। उम्र के सत्तहरवें सावन में एक टांग के सहारे एक यहीं काम पूरी महारत के साथ कर पाता था।बिखरे बिखरे बाल,मैली कुचैंली दाढी इस बात की गवाह थी कि पिछले कई दिनों से उसने नहाया नहीं था।कई दिनों से बीमार चल रहा था और पिछले तीन दिन  से भूखा।भीख मांगकर जमा किए पैसे लगभग समाप्त हो गये थे।पेट की आंतें चिल्ला-चिल्लाकर उससे खाना मांग रही थी.... मगर उसके पास न खाने के लिए कुछ था न खरीदने के लिए ।वह तो बस लोगों के फेंके हुए खाने का और फेंके हुए पैसे का इंतजार कर रहा था.....बड़ी शिद्दत से।उससे अब भूख  सहन नहीं हो पा रही थी।अचानक वह उठा....धीमें धीमें कदमों के साथ....और  धीरे धीरे चलने लगा...... खाने और पैसे की खोज में।अब वह धीरे-धीरे चल ही रहा था कि एकाएक धड़ाम से गिर पड़ा।सामने एक डाक्टर की दुकान थी।उस दुकान में कभी-कभार ही कोई मरीज़ आता था।इसीलिए डाक्टर बहुतांश समय फुरसत में ही होता था।वह दौड़कर उसके पास गया।उसने भिखारी के चेहरे पर पानी के छींटे मारे।भिखारी ने आँखें खोली और पुन: कराहने लगा।डाक्टर ने उसकी नब्ज़ टटोली।आँखें,नाखून और जीभ  देखते हुए बोला, “बाबा!एक दवाई लिख रहा हूँ,जिसे कुछ खाने के बाद ही खाना।" और डाक्टर ने उसके हाथ में बीस रुपये थमा दिए।भिखारी झट से नोट  पर झपटा।और उसे आशिर्वाद देते हुए चल पड़ा..... दवाई की दुकान की ओर।दुकान में काफी भीड़ थी......लंबी कतार लगी हुई थी....ग्राहकों की।कतार में बढ़ते-बढ़ते उसके अरमान जोर मारने लगे।वह एक अरसे बाद चाय और तोस के बारे में सोचने लगा।उसके मुँह में चाय का जायका भी तैरने लगा और  तोस की खुस्की भी।इसका और मज़ा ले पाता उसके पहले ही वह काउंटर पर पहुँच गया।पर्ची दुकानदार को थमाई।दुकानदार ने उससे नौ रुपए मांगे।उसने मन ही मन में हिसाब लगाया कि आज वह पूरे नौ रुपए अपने खाने पर खर्च करेगा और उसी तंद्रा में उसने दुकानदार को बीस का नोट थमाया।दुकानदार ने उससे चिल्लर मांगे.....और वह चिल्लर नहीं है बोलने ही वाला था कि आनन-फानन में उसके हाथ में दवाई के साथ पूरे नौ रुपए की हाजमोला कैंडीयां थमा दी।जिसपर लिखा था कि, “जाहे जितना भी खाओ..... हाजमोला से पचाओ ।" और दुकानदार अगली पर्ची की तरफ बढ़ गया।

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